गोपी तुलसी



                                       एक बार गोपी तुलसी के प्रेम में बिद्ध श्रीकृष्ण को देख कर कर मैंने क्रोधवश अपने को अन्तर्हित कर लियागोलोक अनंत सृष्टियों का केंद्र बिंदु है न! इसी लोक का प्रकाश अन्य सृष्टियों को स्थिर रखता है ..चेतन रखता है .. पदार्थ से निर्मित सृष्टियों का आधार प्रकाश ही है..जो कुछ यहाँ घटता है उसका प्रभाव पदार्थिक सृष्टियों पर स्वतः ही होने लगता है गोलोक के स्त्री विहीन होते ही  समस्त सृष्टियाँ स्त्री विहीन हो गयीं मेरी कला से उत्पन्न सभी देवियां और स्त्रियां मेरे योग बल से मुझ में समाविष्ट हो गयीं..  सभी ब्रह्माण्डों में देवगण, ऋषि गण, मानवगण  स्त्री विहीन हो जाने से कोलाहल करने लगे ..पुरुष वर्ग का छद्म अभिमान शुष्क, निष्प्राण पल्लवों  की भांति बुद्धि से विलग हो कर झर गया हाहाकार मच गया.. शिशु,युवा और वृद्ध सभी का अस्तित्व संकट में पड़ गया पुरुष मृतप्राय होने लगे जीवों का स्वभाव है जो प्रकृति प्रदत्त है उसके प्रति कृतज्ञता न रखना प्रकृति जिसे रचती है उस के अस्तित्व रक्षण की व्यवस्था भी अपरिहार्य रूप से करती है, किन्तु जीव इसका बोध नहीं  रखते कामना विस्तार के अभ्यस्त जीव अधिक प्राप्त करने की अदम्य लालसा से ग्रस्त रहते और परिग्रह में लिप्त रहते हैं जब जो नैसर्गिक रूप से प्राप्त है उस से भी उन्हें वंचित कर दिया जाता है तभी उन्हें उसके मूल्य का बोध होता है स्त्री जाति स्वभाववश  अपने नैसर्गिक दायित्व का वहन करती रहती है  पुरुष वर्ग को उनकी भूमिका के प्रति कृतज्ञ भाव नहीं होता इसी लिए ये अनिवार्य था कि  सम्पूर्ण सृष्टि में स्त्री विहीन दृश्य रचा जाए मुझ शक्ति स्वरूपा को अपनी शक्ति का बोध भी करवाना था, पुरुष वर्ग को


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