प्रथम दर्शन
कृष्ण की कृपा दृष्टि मेरा केन्द्र बिंदु है । परिधि हूं मैं उनकी । जिस दिन प्रथम दर्शन किये , निर्निमेष मंत्रमुग्धा मैं जान ही न सकी कि मैं उनकी आराध्या हूं या वे मेरे आराध्य हृदयेश्वर। एकत्व होते हुए भी हम दो रूपों में व्यक्त थे । परस्पर सम्मोहित , अभिन्न , भावमय दो रूप । आलोड़ित भाव सरिताओं ने अनंत वर्णों के मादक सुगन्धित पुष्प उद्गमित कर दिए । संगीत के अनंत राग-रागिनियाँ प्रकट हो कर थिरकने लगे ….. माधुर्य सिक्त स्वर लहरी गूंज उठी । जहां-जहां चरण कमल चिह्न भी दृष्टिगोचर हुए , मेरी काम्य भावना ने उन पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें पूजा । परम आकांक्षा जागी कि इन सुकुमार , मर्मरी , विश्व वन्दित , सौंदर्य निधान चरणों को अपने वक्ष पर धारण कर लूं , चित्त में संजो लूं , जिससे मेरे आराध्य मदन - मोहन मेरे प्राण बन क...