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प्रथम दर्शन

                                      कृष्‍ण की कृपा दृष्‍टि मेरा केन्‍द्र बिंदु है । परिधि हूं मैं उनकी । जिस दिन प्रथम दर्शन किये , निर्निमेष मंत्रमुग्‍धा मैं जान ही न सकी कि मैं उनकी आराध्‍या हूं या वे मेरे आराध्‍य हृदयेश्‍वर।    एकत्‍व होते हुए भी हम दो रूपों में व्‍यक्‍त थे । परस्‍पर सम्‍मोहित , अभिन्‍न , भावमय दो रूप । आलोड़ित भाव सरिताओं ने   अनंत वर्णों के मादक सुगन्धित पुष्प उद्गमित कर दिए । संगीत के अनंत राग-रागिनियाँ प्रकट हो कर थिरकने लगे ….. माधुर्य सिक्त स्‍वर लहरी गूंज उठी । जहां-जहां चरण कमल चिह्न भी दृष्टिगोचर हुए , मेरी काम्य भावना ने उन पर पुष्‍पांजलि अर्पित कर उन्हें पूजा । परम आकांक्षा जागी कि इन सुकुमार , मर्मरी , विश्व वन्दित , सौंदर्य निधान चरणों को अपने वक्ष पर धारण कर लूं , चित्‍त में संजो लूं , जिससे मेरे आराध्‍य मदन - मोहन    मेरे प्राण बन क...

आदर्श पुरुष कृष्ण

मेरे दर्शन से प्रफुल्लित श्रीकृष्ण ने , मेरी प्रसन्नता के लिए जगन्मंगल कवच की रचना   कर , मेरी शक्ति से स्वयं को सुरक्षित किया । उस कवच को कृष्ण ने भक्तिपूर्वक अपने कंठ में धारण किया । तदुपरांत मेरी तृप्ति के लिए , मेरी रूचि के सोलह उपचार-आसन , वस्त्र , पाद्य , अर्घ्य , सुंगन्धि , लेपन , धूप , दीप , पुष्प , स्नानजल , रत्न - आभूषण , नैवेद्य , ताम्बूल , जल , मधुपर्क , रत्नजड़ित शैय्या अर्पित कर , मुझे भावपूर्ण निष्ठा के साथ   पूजित किया । मेरी संतुष्टि ने सृष्टियों को स्त्री युक्त कर दिया ..कृष्ण की शरणागति सिद्ध हो गयी ..कृष्ण परम पूज्य इष्ट के रूप में प्रतिष्ठित हो गए... । कृष्ण सृष्टि बीज हैं न .. किरणें सूर्य से गुणों में विलग हो सकती हैं क्या ? लहरें उदधि से गुण धर्म में भिन्न हो सकती हैं कभी ? कृष्ण ने मेरे संतोष , मेरी प्रसन्नता के लिए स्तोत्र रचे .. स्तुति से कौन प्रसन्न नहीं हो सकता ? अपराध , क्षमा याचना से तनु हो जाते हैं .. स्तोत्र से संतुष्ट चित्त मैं , रासेश्वर के सम्मुख अभिव्यक्त हो जाती हूँ .. यही सन्देश दिया है कृष्ण ने प्रत्येक पुरुष के लिए ..जिस - ज...